गुरु शिष्य परंपरा सदियों से हमारे देश में चली आ रही हैं | इस परंपरा के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को शिक्षा देता है | आब हम गुरु शब्द का अर्थ जानेगे |
“गु “ शब्द का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)
और “रु” शब्द का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)
इस प्रकार जो अज्ञान को नष्ट करके ज्ञान का प्रकाश फैलाते है वही गुरु कहलाते हैं| गुरु का हमारे जीवन में बहुत ही बड़ा महत्व है जो कि सर्वविदित है| शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार है जो हमेशा ही बिना किसी स्वार्थ के भेदभाव रहित व्यवहार से बच्चों को अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है |माता-पिता के बाद शिक्षक ही होते हैं जो बच्चों को एक सही रूप में भरने की नींव रखता है| शिक्षक दिवस देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म के अवसर पर हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है |
समाज में सही दिशा दिखाने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है |वह देश के भावी नागरिकों अर्थात बच्चों के व्यक्तित्व सवारने के साथ-साथ उन्हें शिक्षित भी करता है | इसलिए शिक्षकों द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों के लिए सम्मानित करने शादी में शिक्षक दिवस कहलाता है| डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जो 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे ,उनके जन्मदिवस के अवसर पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है| संस्कृतज्ञ दार्शनिक होने के साथ-साथ शिक्षा शास्त्री भी थे |राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे शिक्षा क्षेत्र में थे |1920 से 1921 तक उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र पद को सुशोभित किया | 1939 से 1948 तक विश्व विख्यात काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर रहे| राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनका जन्म दिवस सर्वजनिक रूप से आयोजित करना चाहा तो उन्होंने जीवन का अधिकतम समय शिक्षक होने के नाते इस दिवस को शिक्षकों का सम्मान करने हेतु शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की बात कही |
इस दिन स्कूलों, कॉलेजों में शिक्षक का कार्य छात्र खुद ही संभालते हैं| इस दिन राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण के प्रति समर्पित शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है| शिक्षक राष्ट्र निर्माण में मददगार साबित होते हैं वहीं वे राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षक भी हैं| वे बालकों को न केवल साक्षर बनाते हैं बल्कि उनमें हित-अहित,भला-बुरा सोचने की शक्ति उत्पन्न करते हैं| इस तरह वे राष्ट्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|
शिक्षक इस दीपक के समान है जो अपनी ज्ञान ज्योति से बालकों को प्रकाशित करते हैं |वे राष्ट्र की संस्कृति के माली होते हैं जो संस्कार की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं| संत कबीर ने तो ग्रुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना है उन्होंने लिखा है कि –
गुरु गोविंद दोऊ खरे , काके लागू पाय |
बलिहारी गुरु आपने , गोबिन्द दियो मिलाय ||
शिक्षक को आदर देना ,समाज और राष्ट्र में उनकी कृति को फैलाना केंद्र और राज्य सरकारो का कर्तव्य ही नहीं ,दायित्व भी है |इस दायित्व को पूरा करने का शिक्षक दिवस एक अच्छा दिन है| गुरू से आशीर्वाद लेने की भारत की अत्यंत प्राचीन सभ्यता है| प्राचीन समय मे हम गुरुकुल मे जा कर पढ़ाई करते थे और वहीं रह कर गुरु की सेवा भी करते थे |परंतु जैसे जैसे समय बदला ये सभी चीजे बदल चुकी हैं।
अंत मे आज मुझे दुख से कहना पर रहा है की जो इज्जत गुरु को हम पहले देते थे अब वो खो गई है और खोति चली जा रही है जो की नहीं होना चाहिए | हमे अपने गुरुवो का आदर और सम्मान करना चाहिए क्युकी वो इन चीजों की अपने विद्यार्थी से बहुत आशा रखते है |